चल साथी कहीं दूर चलते हैं
चल साथी कहीं दूर चलते हैं
मशरूफ़ दुनिया से अब फुर्सत लेते हैं
इस शोर के अकेलेपन से अब विदा लेते हैं
सुकून की कुछ सांसें लेने का हक तो हम भी रखते हैं
चल साथी ……….
कोई चाहत बची नहीं अब बाकी
जिम्मेदारियाँ पूरी हो गईं सारी
जीवन के कुछ पन्ने अभी भी हैं खाली
उनको भर सकें ऐसी नयी दिशा ढूँढते हैं
चल साथी ……….
उम्र का मोड़ अब ऐसा आने को है
रास्ता कब रुक जाए यह खबर नहीं है
कदम से कदम बहुत मिला लिया
अब हाथ थाम कर चलते हैं
चल साथी ……….
वन्दना सूद