लड़का करे तो हक, लड़की करे तो नाटक?”
लड़का करे तो हक़ कहाए,
लड़की करे तो नाटक गाए।
वही हँसी जो मुख पर उसकी,
उसे छिछोरापन बतलाए।
लड़का रोए तो दर्द गिना दो,
लड़की रोए तो नाटक बना दो।
वही ख़्वाब जो आँखों में उसके,
उसे हदों में सीमित करा दो।
लड़का बोले तो बेबाकी,
लड़की बोले तो बेशर्मी।
लड़का जिए तो आज़ादी,
लड़की जिए तो बदनामी।
वो भी धूप में झुलसती है,
पर छाँव में रहने की आदत सी क्यों?
वो भी सपने देखे रातों में,
पर उड़ान पे पहरे की साज़िश क्यों?
लड़का करे तो जुनून कहाएँ,
लड़की करे तो जुनून में पागल कहाएँ।
वही हिम्मत जो उसमें दिखे,
उसे घमंड का तमगा दिलाएँ।
कब तक यूँ दो तराजू रहेंगे,
न्याय के नाम पर अन्याय सहेंगे?
वक्त आ गया अब तोड़ चलें,
सोच की बेड़ियाँ छोड़ चलें।
- शारदा गुप्ता