कविता : हर आदमी समान है....
आदमी महल में रहता हो
या रहता झोपडी में
मगर विधाता ने लिखा बरा बर
ही दोनों की खोपड़ी में
बेशक अमीर आदमी अच्छा
खाता और पीता हो
बहुत आराम से सोता और
मजे से जीता हो
गरीब आदमी बेशक भर पेट खा
भी न पाता ढंग से न सोता हो
वो बेचारा दुखी हो कर कभी
फिर सुबक सुबक रोता हो
फिर भी दोनों ही ऑक्सीजन
एक ही लेते हैं
दाल रोटी दोनों खाते पानी भी दोनों
एक ही तो पीते हैं
इस में देखा जाए तो
क्या अंतर है ?
गरीब हो या धनी
समानांतर तो है
ये भी नहीं अच्छा खाता पीता
आदमी उम्र लंबी करता हो
और ये भी नहीं गरीब आदमी
बहुत ही जल्दी मरता हो
और ये भी नहीं गरीब आदमी
बहुत ही जल्दी मरता हो.......
netra prasad gautam

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




