अपने ही गिराते हैं नशेमन पर बिजलियाँ
गगन में गूंजती हैं वो साजिशों की बातें,
हवाएँ भी हैं संग, जलाने को हैं आतुर।
दीप जो हमने जलाए थे उजालों के लिए,
वही अब धुएँ में समा रहे हैं बे-ग़ुरूर।
अपनों के ही हाथों बुझती हैं मशालें,
सपनों की धरती पर जलते हैं अंगारे।
जो संवारते थे कल तक इन महलों की दीवारें,
आज वही उठा रहे हैं आँधियों के शरारे।
आसमाँ से शिकायत करें भी तो किस तरह,
बादल यहाँ बरसते नहीं, बरसाते हैं शोले।
रिश्तों की बगिया में झुलस रहे हैं फूल,
छाँव देने वाले दरख़्त भी हैं झूठे धोखे।
पर अमर रहेगा हर वो दीप उजाले का,
जो साज़िशों के तूफानों से हारता नहीं।
नशेमन अगर जल भी जाए तो क्या,
एक नई सुबह उगने से डरता नहीं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




