जितना बाहर उससे ज्यादा अंदर हूँ
फक्कड़ होकर भी मस्त कलंदर हूँ
सब लहरें नदिया दरिया मेरे बाजू हूँ
आसमान को तकता एक समंदर हूँ
यारी में हँसकर करते हैं जां क़ुरबान
दुश्मन आजाये तो एक सिकंदर हूँ
एक शहंशाह आज़ बना देखो प्यादा
सिर्फ लकीरों में लिखा मुकद्दर हूँ
दास दिखाई पड़ता है वो सच ही होगा
आँखों की झाईं का एक बवंडर हूँ II