रंगीन पेंसिल से
दीवार पर बनी, एक तितली
जिसके,एक पंख,एक आंख,
एक वर्तुल मूंछ, कुछ टेढ़े-मेढ़े पैर
और लगभग इतनी ही चीजें गायब,
ये तितली जितनी अधूरी,
उससे भी ज्यादा पूरी,
इस तितली के एक पंख में
बचपन, अपने पांवों में घूंघरू बांध कर
वो नृत्य करती है,
जिसकी संगीत की मौन ध्वनि
मन को अंदर ही अंदर
झंकृत कर देतीं है,
वर्तुल मुंछ में,
मासूम नन्ही उंगलियों की
घूमती हुई वो शरारत, नजाकत भरी
निडर शैतानियां,जो
पुकारती है, हमारे,उस अतीत को,
जिन्हें हम, गांव की धूल मिट्टी को
सौंपकर, काफी पहले आ गये हैं,
टेढ़े-मेढ़े कुछ पैरों से,
निकलती है, तुतली बोली में
स्वकमाल की
बेगानेपन पन से भरी गाथा,
जो भर देती है, एक तड़पन
लाचार कर देती है,
एक गहरी सांस लेने को
अपनी बचपन को पाने के लिए,
उस तितली की
एक ही आंख में,
दर्शन हो जाते हैं,
भगवान के उस स्वरूप का,जो
त्रेता में कौएं के पीछे भागते थे,
द्वापर में, मां के सामने ही
मिट्टी खा लिया करते थे।।
सर्वाधिकार अधीन है


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







