डर कौन देता है — ये सवाल रह गया,
आईना टूटा और कमाल रह गया।
लोग क्या कहेंगे — यही सोचते रहे,
भीतर का तूफ़ान बेहाल रह गया।
समझा जिसे दुनिया की साज़िश मैंने,
दरअसल वो मेरा ही जाल रह गया।
जिसने मुझे झुकते देखा था रोज़,
अब वो भी कहता — तू कमाल रह गया।
मैं ही खुद से नज़रें चुराती रही,
और कहती रही — बस हालात रह गया।
सहती रही, सहकर चुप्पी ओढ़ी,
अपना ही सच सबसे ग़ुमनाम रह गया।
डर वो नहीं जो समाज ने बाँटा,
डर तो था — जहाँ ‘मैं’ सवाल रह गया।
मैं टूटी नहीं, बस चुप हो गई,
और उन्होंने समझा — मैंने हार मान लिया।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




