कविता : घर का न घाट का....
लड़की के चक्कर में
मां बाप को छोड़ दिया
उसी से जिंदगी भर का
संबंध जोड़ लिया
वो संबंध कुछ बखत
कुछ साल तो चला
आखिर वो संबंध भी
कब तक चलता भला ?
एक दिन उसकी मेरी किसी
बात पर कन कन हो गई
उसी बात को ले कर उसकी
और मेरी अनबन हो गई
अनबन क्या हुई उसने तो
किसी और से संबंध जोड़ लिया
मैं कमबखत को तो
उसने एक झटके में ही छोड़ दिया
फिर क्या न मेरे मां बाप रहे न वो
रही मैं न घर का न घाट का
अब मैं कहां जाऊं क्या
करूं दुख है इसी बात का
अब मैं कहां जाऊं क्या
करूं दुख है इसी बात का.......