मुझे मालूम था के क्या कहेगा
तूँ हां कहेगा या फिर ना कहेगा
दिल की आवाज़ को अनसुना न कर
दिल बातूनी है..कुछ खामखा कहेगा
तूँ इसको टोक या फिर रोक दे पर
ये कहता आ रहा है... तुझे जां कहेगा
बड़ी ख़ामोशी से बेवफा हो जाना
जमाना अंत तक तुझे मेरा कहेगा
तूँ मुझको तोड़कर खुद को हासिल कर ले
तेरे लिए यही ज़्यादा आसां रहेगा
दिले उम्मीद की लौ जल रही है
के तूँ हाँ कहेगा केवल हाँ कहेगा
-सिद्धार्थ गोरखपुरी