साथी को खोकर जीवन के मोड़ों पर,
अकेली ही अब चलती जाती हूँ,
दो नन्हे बच्चों को सँभालकर,
हर आँधी में खुद को थामे जाती हूँ।
रिया — मेरी रागिनी-सी कोमल,
संगीत-सी मधुर, सौंदर्य की प्रतिमा,
हर मुस्कान में भर देती है उजास,
उसके सपनों में बसती है प्रीतिमा।
अंशु — उजालों की पहली किरण,
भविष्य की रौशनी, मेरी आँखों का नूर ,
उसकी आँखों में चमकते हैं सपने,
जैसे अंधेरों में कोई स्वर्णिम रतन।
मैंने हर दुख को काजल में छुपाया,
नींदों की बलि पर हर पर्व निभाया,
पढ़ाया, बढ़ाया, सींचा प्यार से,
हर राह में खुद को पीछे लगाया।
अब जब वे उड़ने को तैयार हैं,
अपने जीवन के नए द्वार हैं,
तो मन में उठता है एक सवाल —
कैसे साधूँ उनकी ज़िंदगी की चाल?
ना सिर पर अपनी छत का साया,
ना थामने को कोई मजबूत कंधा आया,
कभी इस चौखट, कभी उस द्वार जाती,
आस की डोरी से उम्मीदें पिरोती जाती।
माँ हूँ — टूटती नहीं हूँ फिर भी,
थकावट की चादर में रोज़ सिसकती हूँ,
रुक-सी गई हूँ एक मोड़ पर,
फिर भी बच्चों के लिए चलती हूँ।
क्योंकि जानती हूँ - रिया की मधुरता महकेगी,
अंशु — उजालों की पहली दस्तक,
जो हर दिशा में स्वप्न जगाएगा।
ये बादल छँटेंगे, कल शहनाइयाँ गूँजेंगी।”


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







