आज कवि दुखी है,
विपत्ति में कौन सुखी है ,
या अनहोनी को होनी कह दू
या वाणी को मोन ही रहने दू
लेकिन केवल भावनाओं से संसार ना चलता है ,
ऐसे ही कवि का पेट न पलता ,
बिन बाती न दीपक जलता ,
घर का बड़ा बेटा सबसे पहले जीवन पथ पर चलता ,
लाचारी को मैं प्रणाम करता
जो गम मुझे परायों से मिले ,
रो रो कर मैंने कर दिया तकिये गीले
पराए भी अपने हो जाए ऐसा कोई मन ही नहीं ,
गैरों से अपने अपनों के दुश्मन कुछ कम ही नहीं
यह मोत तु मंद मंद ना आ,
पहले अलार्म बजा फिर मुझे आजमा,
सपनों के संसार में इस कदर खो गया ,
पता ना चला कब सवेरा हो गया,
मेरा जीवन भी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसा हो गया क्योंकि
अपनों के जाने का गम लगे मुझे परमाणु बम
----अशोक सुथार