एक भीड़ जो कभी अपनी थी
चले थे हम साथ कभी एक भीड़ जुटाए
साथ खेलते,साथ खाते और साथ ही रहते,
हर सुख दुख को एकजुट होकर निभाते।
दर्द में आँसू पोंछने को भीड़ उमड़ आती,
ख़ुशियों के पल सबके संग ही मुस्कुराते।
फिर एक वक्त आया
समय सबको अपनी अपनी ओर ले गया,
और आज वही भीड़
अपनों के होते हुए भी,
बिखरी बिखरी सी नज़र आने लगी..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




