पिला दे आज मुझे तू साकी,
मृदु भावों की अपने मधु हाला।
तृषित, प्यासे, शुष्क होठों पर,
छलका दे प्रीत रस का इक प्याला।
मग्न हो तुझमें गुम हो जाए,
दर्द की यह करुण कल्पित बाला।
असमंजस में पड़ी - पड़ी,
देखे केवल रंगीली मधुशाला।
मस्त नयनों की तृप्त पिपासा,
जगाए पीने की अभिलाषा।
माणिक सुरभित मादक आसव,
भर मुस्काती लोलुप प्याला।
पीकर मकरंद भ्रमित हुआ भृंग,
किसने पिलायी उसको मद हाला।
इठलाया, बलखाया झूमे,
आ पहुंचा शायद मधुशाला।
_ वंदना अग्रवाल "निराली "

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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