यहां सबको हे अपनी चाहतो की फिकर
किसी को होती नहीं दिलवालो की फिकर
खुशियां आती हे जाती हे पर टिकती नहीं
दिल को लगी रहती हे आंसुओ की फिकर
ये कैसा जनादेश हे सबको बांधे हुये हे
जिन्हे है दुसरो से ज्यादा परीवार की फिकर
जो मजबूर हो बेच देते हे तन को टुकड़े में
उन्हें शाम होते ही सताती हे श्रृंगार कीफिकर
के बी सोपारीवाला