कापीराइट गजल
कोई शिकवा नहीं तुम से शिकायत नहीं कोई
बन सके न हम किसी के अपना नहीं कोई
कितने अरमां थे दिल में तुझे बसाने के लिए
टूटा है ये दिल इतना कि ठिकाना नहीं कोई
यहां आप को हम अपना अब कह नहीं सकते
नजर आते हैं सब अपने पर अपना नहीं कोई
अपने मतलब की खातिर वो साथ रहते हैं मेरे
किसी निगाह में अपनी अब सपना नहीं कोई
ये कैसा दस्तूर है यारो इस जमाने का यहां
यहां पे हमदर्द बहुत हैं मगर अपना नहीं कोई
मैं लुटा हूं इस तरह कि कुछ मेरे पास नहीं
ये आंखें हैं सूनी सूनी इनमें सपना नहीं कोई
क्यूं बेचैन हो गए हो, इस बात से तुम यादव
इस मतलबी जहां में अब अपना नहीं कोई
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




