कापीराइट गजल
काश कह पाते तुम से दिल की बातें
गुजर रहे हैं अब कैसे मेरे ये दिन ये रातें
शिकायत है क्या हमसे हम जानते नहीं
कर रहे हो तुम कैसी अब न जाने ये बातें
वही देखा सुना तुमने जो तुम्हें बताया गया
काश फैसले भी सभी अपने तुम ले पाते
न जाने किस को तुम मानते हो अपना
काश अपनों को दिल से तुम समझ पाते
यह खून के रिश्ते भी होते हैं बड़े अजीब
क्यूं हर रिश्ते को दिल से निभा नहीं पाते
जिन से उम्मीद थी हमें हद से भी ज्यादा
करते हैं वही हम से अब दूर से बातें
पास रह कर के भी तुम मेरे पास न थे
कर न पाएंगे कभी तुमसे दिल की बातें
इस तरह से क्यूं परेशां हो रहे हो यादव
काश खुद को भी कभी तुम समझ पाते
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है