गब्बर- ओ हरिया, जरा देख तो जरा, ये कहां हैं।
हरिया - हुजूर ये तो बताइए किसको देखूं।
गब्बर- अरे ये अशोक पचौरी आर्द्र और रीना कुमारी प्रजापत को खोज जरा।
हरिया - सरदार, ये दोनों तो दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहे इस महफिल में, कहीं वो वेदव्यास मिश्र के मुशायरे में ना चले गए हों। आप क्यूं खोज रहे हो।
गब्बर - हूं, लगता है वो लेखराम यादव की महफिल में गए हैं।
हरिया - सरदार, यादव तो पहले ही कुछ उदास दिखाई दे रहा है, उसके यहां तो नहीं गए।
गब्बर - सरदार, यादव सर ने कल एक गजल - 'शायरी की दुनियां में' पोस्ट की थी, लेकिन इन दोनों ने उस पर नजर तक नहीं डाली और आज भी तीन गीत लिखनतु डाॅट काम पर डाली थी, इन्होंने उसे घास तक नहीं डाली।
गब्बर - हूं तो ये बात है , फिर वो कहां जा सकते हैं।
हरिया - सरदार सच कहूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे।
गब्बर - बताओ तुम कौन सी गजल की खिचाई पका रहे हो।
हरिया - सरदार आजकल इन दोनों को 'ख्वाब' वाली गजल पसन्द है। ये कवि लोग ठहरे ये अपनी गजल सुनाने में उस्ताद हैं, किसी की गजल सुनने से इन्हें परहेज हैं। कल यादव ने इनकी पोल पट्टी अपनी गजल में खोल कर रख दी। ये दोनों तभी से गायब हैं।
गब्बर - अच्छा तो अब समझा वो क्यों नहीं नजर आ रहे। अपने सारे जासूसों काम पर लगा दो और इन्हें यहां पर पकङ कर लाओ। हम भी तो देखें कितना दम है इन दोनों में।
हरिया - सरदार मैं अभी से सब को काम पर लगा देता हूं और शाम तक खोज कर आपके सामने पेश करता हूं।
गब्बर - आदेश की पालना की जाए।
हथियार - जी सरदार।
------- क्रमशः शेष कल के एपिसोड में -----------------
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