हम विश्राम कर भी लें बेशक़,
मगर घड़ी के काँटें चलते ही रहते हैं !!
हम आराम कर भी लें सोकर ,
मगर धड़कन तो चलते ही रहते है !!
पक्षियों की कतारें बता रही हैं,
वे मस्त हैं अपनी मस्ती में !!
शायद उन्हें पता ही नहीं
जीवन और मृत्यु के इस हर दिन के
चक्रव्यूह के बारे में !!
उन्हें सिर्फ पता है सिर्फ आनन्द क्या है,
बिलकुल फूलों की तरह !!
खिले तो खिले पूरे आनन्द में और,
झर भी गये पूरी मस्ती में !!
क्या हम भी नहीं जी सकते इस,
गजब की मस्ती में..आनन्द में !!
बारिशों में बुलबुलों का क्या,
वे तो बनते हैं और मिटते ही रहते हैं !!
मगर ये भी सच है प्रकृति की संगत में,
बारिश हमें अपनी मधुरम धुन से..
भिगोते ही रहते हैं !!
बारिश कहती है अगर भीग गये मुझमें,
तो यकीनन तुम बचपने में ..युवा हो ...
तुम्हारा आनन्द भी बचपना है..युवा है !!
उम्र चाहे जो भी हो मगर अपनी मस्ती,
कभी खो मत देना ..और
आनन्द के फूलों को खिलने जरूर देना !!
दुख-सुख का क्या है ,
ये तो आते-जाते ही रहते हैं !!
वेदव्यास मिश्र की जीवंत कलम से..
सर्वाधिकार अधीन है