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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

हम विश्राम कर भी लें बेशक़..

हम विश्राम कर भी लें बेशक़,
मगर घड़ी के काँटें चलते ही रहते हैं !!

हम आराम कर भी लें सोकर ,
मगर धड़कन तो चलते ही रहते है !!

पक्षियों की कतारें बता रही हैं,
वे मस्त हैं अपनी मस्ती में !!

शायद उन्हें पता ही नहीं
जीवन और मृत्यु के इस हर दिन के
चक्रव्यूह के बारे में !!

उन्हें सिर्फ पता है सिर्फ आनन्द क्या है,
बिलकुल फूलों की तरह !!
खिले तो खिले पूरे आनन्द में और,
झर भी गये पूरी मस्ती में !!

क्या हम भी नहीं जी सकते इस,
गजब की मस्ती में..आनन्द में !!

बारिशों में बुलबुलों का क्या,
वे तो बनते हैं और मिटते ही रहते हैं !!

मगर ये भी सच है प्रकृति की संगत में,
बारिश हमें अपनी मधुरम धुन से..
भिगोते ही रहते हैं !!

बारिश कहती है अगर भीग गये मुझमें,
तो यकीनन तुम बचपने में ..युवा हो ...
तुम्हारा आनन्द भी बचपना है..युवा है !!

उम्र चाहे जो भी हो मगर अपनी मस्ती,
कभी खो मत देना ..और
आनन्द के फूलों को खिलने जरूर देना !!

दुख-सुख का क्या है ,
ये तो आते-जाते ही रहते हैं !!

वेदव्यास मिश्र की जीवंत कलम से..


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है
 हम विश्राम कर भी लें बेशक़      मगर घड़ी के काँटें चलते ही रहते हैं !! हम आराम कर भी लें सोकर       मगर धड़कन तो चलते ही रहते है !! पक्षियों की कतारें बता रही हैं      वे मस्त हैं अपनी मस्ती में !! शायद उन्हें पता ही नहीं जीवन और मृत्यु के इस हर दिन के चक्रव्यूह के बारे में !! उन्हें सिर्फ पता है सिर्फ आनन्द क्या है      बिलकुल फूलों की तरह !! खिले तो खिले पूरे आनन्द में और      झर भी गये पूरी मस्ती में !! क्या हम भी नहीं जी सकते इस      गजब की मस्ती में..आनन्द में !! बारिशों में बुलबुलों का क्या      वे तो बनते हैं और मिटते ही रहते हैं !! मगर ये भी सच है प्रकृति की संगत में      बारिश हमें अपनी मधुरम धुन से.. भिगोते ही रहते हैं !! बारिश कहती है अगर भीग गये मुझमें      तो यकीनन तुम बचपने में ..युवा हो ... तुम्हारा आनन्द भी बचपना है..युवा है !! उम्र चाहे जो भी हो मगर अपनी मस्ती      कभी खो मत देना ..और आनन्द के फूलों को खिलने जरूर देना !! दुख-सुख का क्या है       ये तो आते-जाते ही रहते हैं !! वेदव्यास मिश्र की जीवंत कलम से.. 


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

क्या ही सुंदर, जीवनदर्शन से भरी कविता है — जैसे किसी शांत झरने की आवाज़ में आत्मा की पुकार घुल गई हो।

"हर पंक्ति में बहता है एक सच्चा रस —
जैसे प्रकृति खुद कह रही हो: जी लो ज़रा मस्ती में, उम्र से परे होके।"
आदरणीय आचार्य जी को सादर प्रणाम

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' जी,
ध्यान से जब देखा मैंने आपकी समीक्षा को तो पता चल रहा है कि आपके द्वारा की गई समीक्षा स्वयं एक शानदार रचना बन गई है !!
सच ही कहा है किसी ने..खुशबूदार फूल को छूने पर हाथ भी महक जाते हैं !!
आभार नतमस्तक भाई अशोक जी !!
शुभाशीष आभार अभिवादन !!

वन्दना सूद said

सुंदर sir अति सुन्दर 👌👌👏👏प्रेरणादायक रचना

वेदव्यास मिश्र said

वन्दना सूद जी,
हृदयस्पंदित समीक्षा पाकर मन प्रसन्न हो गया वन्दना जी !!
आभार सहृदय नमन 💝💝

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