कविता : इर्द-गिर्द....
तुम्हें पाने की मेरे दिल
में बहुत ही ख्वाइश है
शायद तुम्हारी मेरे बजाए
किसी और की च्वाइस है
कसम प्रिय तुम्हें देख कर
मेरा दिल झूमता है
मगर क्या करूं तुम्हारे इर्द- गिर्द
कोई और ही घूमता है
मगर क्या करूं तुम्हारे इर्द- गिर्द
कोई और ही घूमता है.......
netra prasad gautam