ज़िन्दगी के घाव
सब कहने की बात है
कि वक्त हर घाव भर देता है
ज़िन्दगी के दिए घाव को मरहम कहाँ मिला करते हैं..
उम्र बीत जाती है
घाव हरे ही रह जाते हैं
कभी अपनों से तो कभी परायों से कुरेदे जाते हैं
ज़िन्दगी के दिए घाव को मरहम कहाँ मिला करते हैं ..
वक़्त समय में बाँध लेता है
नए ज़ख्मों से पुराने का दर्द कम लगने लगता है
समाज की ताक़त कुछ भी भूलने नहीं देती है
ज़िन्दगी के दिए घाव के लिए मरहम कहीं नहीं मिला करते हैं ..
वन्दना सूद