जब देखा तुझे पहली बार सीने में
अजीब सी कसक उठी थी,
तेरी वो थकी सी आँखें बहुत कुछ कह रही थी।
होंठ बंद थे तेरे, थोड़ी सी मुस्कान भी थी,
पर वो तबस्सुम, मुझे सरासर झूठी लग रही थी।
क्या हुआ होगा इस ज़िंदादिल रूह के साथ,
मैं चुप हो बस रोजाना यही सब सोच रही थी।
बहुत कुछ सहा था शायद तूने,
तेरी आँखें बस यही कह रही थी।
ज़िंदगी के तूफ़ानों की थकान
तेरे चेहरे पर साफ़ झलक रही थी,
फिर भी तू सब कुछ छुपाने की
कोशिश कर रही थी ।
तेरा उतरा चेहरा, तेरे दबे होंठ,
तेरी वो थकी हुई नम आँखें,
ख़ामोशी के साथ बस जोर-जोर से
चीख रही थी।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️