मनुष्य ,
जीवन पथ पर ,
हंसते रोते चलते रुकते,
थकते गिरते संभलते,
अनगिनत पड़ावों पर ,
छोड़ जाता है ,
अमित छाप ,
उन परछाइयों की,
जिनका आभास ,
होता है युग युगान्तर,
उन भूलते बिसरे ,
पथिकों को,
जो उत्तरांतर ,
चलते सहते उकेरते रहते ,
काल्पनिक राहें,
ताकि चलायमान रहे,
युग युगान्तर ,
जीवन पथ पर ,
मनुष्य !
✒️ राजेश कुमार कौशल