नींद उलझ कर आँखों में कुछ कह न पाई।
मदहोशी में रात करवट करवट कट न पाई।।
बीते लम्हो की परछाईं संग न छोड़ें मन का।
गुज़रे पल की सच्चाई दिल पिघला न पाई।।
खामोशी में आवाजें तन्हाई का चादर ओढ़े।
कभी दीवारों में ढूँढे 'उपदेश' दिखा न पाई।।
उठ कर बैठ गया रोशनी झुर्रियों की देखकर।
दर्द का सफर रहा गहरी याद में नींद न आई।।
- उपदेश कुमार शाक्य वार 'उपदेश'
गाजियाबाद