बरस हो गए लोगों को समझाते-समझाते
फिर भी पूछते हैं तुम्हारा फ़ैसला क्या है?
लोग सोचते हैं मैं बदल जाऊंगी
बदलना मैं चाहती नहीं और
लोग जीने देते नहीं ,
बड़ी ही कश्मकश में है ज़िंदगी
आंसु छुपाए छुपते नहीं।
फ़ैसले एक बार करती हूॅं,
मैं अपनी ज़िंदगी से बहुत प्यार करती हूॅं।
जैसी भी है मेरी है,
मैं इस पर जान निसार करती हूॅं।
फ़ैसले मैं अपने बदलती नहीं
और लोग कहते हैं ये ठीक नहीं।
अपने फ़ैसले मैं अटल करती हूॅं,
ज़िंदगी से बातें मैं रोज़ करती हूॅं।
ना कोई उभरता सितारा हूॅं
और ना ही मैंने कोई बुरा काम किया है,
फिर भी लोग मुझसे और मेरे नाम से जलते क्यों हैं? बड़ी ही कश्मकश में है ज़िंदगी
आखिर लोग ऐसा करते क्यों हैं?
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️