दफ्तरों में,
फोटो लगाकर राम की।
माला जप वाता,
अपने नाम की।
जंग लगे लोहे पर,
इतिहास लिख रहे।
अपना तेरी करवा के,
नोट छाप रहे।
जिसने थोड़ा सा मुंह खोला,
किनारे पर लगाए रहे।
प्रतिष्ठा को उसकी,
दांव पर लगा रहे।
अंकी इंकी डंकी लाल,
मनमानी कर।
स्वयं को,
स्वयंभू बताए रहे।
पलट दिया पासा,
शकुनी मामा ने।
पहुंचा दिया हवालात में,
वहां भी गणित बनाय रहे।