अश्क बहने लगे , दिल से कहने लगे,
क्या जरूरत थी खुद को लगाया कहीं,
माना के सच है टुकड़े तेरे हुए,
मगर इसकी सजा हमने भी पाई,
जिन आँखों में हम बरसो से थे,
आज उनसे ही हमारी विदाई हुई।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
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माना के सच है टुकड़े तेरे हुए,
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आज उनसे ही हमारी विदाई हुई।
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