हम जिनके लिए जागतें रहें अक्सर रातों को ।
वो ज़ालिम चैन की नींद सोते रहें उन्हीं रातों को।
क्या ख़ाक मोहब्बत करेगा कोई इस ज़माने में..
अरे अब वो वफाई ना रहीं।
कोरा कागज़ सा रह गया ये इश्क़
लिखना बहुत कुछ था इसपे पर वो रोशनाई ना रही।
सिर्फ़ काली स्याह बेखुदी की रातें बचीं हैं
और उजालों की तो रश्मदायिगी भी ना रही।
बस अकेलापन बंजारापन
तन्हाई रुसवाई बेवफाई जग हंसाई
मिली है।
इश्क के राहों में सिर्फ तन्हाई मिली है..
बेअदब बेवफ़ा महबूबा मिली है
इश्क़ के राहों में सिर्फ़ तन्हाई मिली है..
इश्क़ के राहों में सिर्फ़ तन्हाई मिली है..