जैसी तरह की दुनिया, वैसे तरह के हम
बर्बादियाँ मिलीं तो, वैसे बने हैं हम।
चाहत थी आइनों से, टूटी है आरज़ू,
जिनमें थे अपने सपने, टूटे वही हैं हम।
तन्हाइयों के मेले, आहों के सिलसिले,
जैसे हमें बुलाते, वैसे चले हैं हम।
रिश्तों की राख पीकर, जलती रही तलाश,
बदनाम दर्द लेकर, दुनिया चले हैं हम।
अब कौन लौट आए उन रास्तों से फिर,
जो छोड़ आए कब के, वैसे बहे हैं हम।
रोते नहीं हैं अब तो, हँसते भी क्या कभी,
जैसे ख़ुशी मिली थी, वैसे गिरे हैं हम।
जैसी तरह की दुनिया, वैसे तरह के हम,
जो जहर पी चुके हैं, वैसे जिए हैं हम।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




