कापीराइट गजल
क्यूं प्रदूषण के साथ हम जिये जा रहे हैं
क्यूं हलाहल प्रदूषण का पिये जा रहे हैं
भीड़, गर्मी, शोर और ये प्रदूषण शहर का
किश्तों में सांस क्यूं हम लिये जा रहे हैं
लूट, धोखा, रिश्वत ये मंहगाई शहर की
जुर्म के साये में क्यूं हम जिये जा रहे हैं
चल रही है कैसी, अब हवा ये शहर में
क्यूं अमृत समझ के हम पिये जा रहे हैं
खुदगर्ज होते हैं रिश्ते, शहर में आजकल
रिश्तों में जुर्म हम को ये नजर आ रहे हैं
बसे हुए हैं शहर ये धोखे की नींव पर
हमको धोखे पे धोखा ये दिये जा रहे हैं
माना के शहर में नहीं है दौलत की कमी
फिर गरीबी में लोग क्यूं जिये जा रहे हैं
लगते हैं कई पहरे ये सांसों पे शहर में
जुदा अपने ये खुद से क्यूं किए जा रहे हैं
चकाचौंध हर शहर की लुभाती है बहुत
छोड़ कर गांव क्यूं हम शहर जा रहे हैं
बात कैसी शहर में ये चल रही है यादव
ये जिन्दगी कौन सी हम जिये जा रहे हैं
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




