कैसे रोंक पाओगे उन आंसुओ को,
जिसे माली ने उपवन उजड़ने के बाद बहाया है,
कैसे रोंक पाओगे उन आंसुओ को,
जिसे पिता ने अपनी बेटी को गवां कर बहाया है,
तुम कैसे समझ पाओगे उस पीड़ा को
जिसे कोख उजड़ने के बाद,
किसी बेबस मां ने लुटाया है,
तुम समझ कैसे सकोगे उस वेदना को,
जिस दरिंदगी को सहा है
उस शरीर ने उस बेटी ने,
तुम उन्हे जानवर कहते हो,
उन्हे तो जानवर कहलाने का भी हक नही,
उन्हे जानवर कहना जानवर की बेज्जती है,
कब तक आखिर कब तक ?
कुर्सियों पर बैठने वाली,
महिलाएं देखती रहेंगी इस अन्याय को,
कब तक सक्षम लोग ही करते रहेंगे लाशों का सौदा,
लेते रहेंगे उन दरिंदे, राक्षसों, पिशाचों का साथ
कब तक बने रहोगे सरगना उन दुष्टों का,
आखिर कब तक?
कुर्षियों पर बैठने वालो ये भाषण बाजी कब तक रहेगी जारी
"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,"
आखिर कब बचेगी पढ़ी लिखी बेटी
डॉक्टर बेटी,
कब बदलेगा ये समाज कब खत्म होंगे ये दरिंदे
कब खत्म होगी ये कस्मकस
आखिर कब बचेगी बेटियां?
निर्भया एक और दो न जाने कितनी निर्भया,
कब होंगी बेटियां निर्भया
पैसे के दम पर लाशें खरीदने वालो
कब्र पैसों की नही बनती
चुप्पी साध लेने वाले बुजदिलो,
ये बेटियां ही मां बहन और होती हैं सहेली
खुद के घर तक आने से पहले मार दो इन्हे
इन नर पिशाचों को,
वरना होते रहेंगे ये जुल्म,
कब तक रहोगे चुप आखिर कब तक ?
आखिर कब तक?