सजाकर आँखों में सपने , तुम मेरे घर में आई हो ,
मिटाकर खुद की हस्ती को , मेरी कश्ती में आई हो ,
लुटाती मुझ पर तुम हो , अपना प्यार हो सारा ,
तुम्हारी जुल्फों में डूबे है , होकर खुद से दरकिनारा ,
तेरी वो अठखेलियां देखी , तेरा बचपन भी है देखा ,
जो अब तक ढूँढ़ता था साहिल , उसने किनारा भी है देखा ,
मेरा दिल जो था एक प्यासा सा दरिया ,
मीठे पानी का अब उसने एक फवारा भी देखा ,
तेरा ये शिदततो वाला प्यार , मुझे पागल ही न कर दे ,
खुद से डर लगता है , कहीं कातिल ना कर दे ,
तुझे अफ़सोस में डूबे मैंने है जब पाया ,
तेरी - मेरी मोह्हबत का किस्सा जब समझ आया ,
तू मेरे काबिल थी पूरी , मैं तेरे काबिल न बन पाया।
लेखक - रितेश गोयल 'बेसुध'