खुद से खुद ही को निकालकर,
तुझ पर सब कुछ कुर्बान कर,
लो जी चल दिए हैं हम आज फिर,
तेरे वास्ते, तेरे रास्ते, हँसते हुए यूँ वार कर।
कुछ ख्वाहिशें कुछ हसरतें
जो हैं भी और नहीं भी हैं,
सब कुछ कागज़ पर निकालकर,
तेरी आरजू के वास्ते,
सुन रहगुज़र ओह हमसफ़र,
तू जो है कहीं..तुझे प्यार कर,
तेरे नाम को खुदा मानकर,
लो जी चल दिए हैं हम आज फिर,
तेरे वास्ते, तेरे रास्ते, हँसते हुए यूँ वार कर।
मनमोहिनी....,
चित रागिनी....,
दृग बिम्ब तुम....,
मेरे ईमान का ताज हो,
मेरे अरमानों का राज तुम,
मेरी तकदी का हो फलसफा,
तुझ में रह लूँ जब तब कहीं,
कुछ मौन सा कुछ शोर सा,
तेरे दर झुकी है हर आरज़ू,
तुझसे ही तो हर जुस्तजू,
तेरी रूह ही मेरा आसरा,
तू ही सब मेरा तू ही सब मेरा,
मेरा सब तुझ पर कुर्बान कर,
लो जी चल दिए हैं हम आज फिर,
तेरे वास्ते, तेरे रास्ते, हँसते हुए यूँ वार कर।
सुन प्रेयषी....,
सुन अनुपमा...,
ह्रदय चन्द्रिका...,
तेरे नाम में है जन्नत मेरी,
तू है तो सब अपना लगे,
तू ना हो तो सब वीराना है..,
तेरे बिना जो लम्हे गुज़रे,
सब सूखे रेगिस्तान हुए,
तेरे संग जो साँसें मिल जाएँ,
हर दर्द भी आसान होजाये,
मालख बनकर जो आये हो,
आवाज है सरगम कोई,
बातें दुआओं का संगम हैं,
क्या ईश ने सच में भेजा है,
मेरे लिए कुछ विचारकर?
लो जी चल दिए हैं हम आज फिर,
तेरे वास्ते, तेरे रास्ते, हँसते हुए यूँ वार कर।
----अशोक कुमार पचौरी ‘आर्द्र’
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