घने जंगल की छाया में, कुछ स्वर सुनाई देते हैं,
वो चीख नहीं, वो आह नहीं, पर दिल दहला ही देते हैं।
पेड़ों की हर टहनी कहती, “हमको मत यूँ काटो तुम,”
पंछी रोते नभ के कोने, “हमसे घर मत छीनो तुम।”
हिरण की आंखों में डर है, बाघ भी सहमा सा है,
नदी की मछली पूछ रही, "क्यों जल अब गंदा सा है?"
हाथी कहता, "मेरे बच्चे अब जंगल में डरते हैं,"
रेछा बोला, "सदियों से जो घर था, अब खंडहर बनते हैं।"
वन्य जीवों की ये पुकार, कोई बस कल्पना नहीं,
ये प्रकृति की करुणा है, कोई मौन व्याख्या नहीं।
अगर न समझे अब भी हम, ये संदेश पुराना होगा,
धरती का संतुलन बिगड़ेगा, जीवन वीराना होगा।
आओ मिलकर वादा करें, जंगल को फिर से बसाएँ,
वन्य जीवों के संग हँसें, उनके गीतों को गाएँ।
उनकी रक्षा, हमारा धर्म यही सच्चा उपकार,
वरना फिर सुनाई देगी वन्य जीवों की पुकार !
विरेन्द्र जैन माहिर
वड़ोदरा गुजरा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




