तीन गधे- डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात" हास्य -व्यंग
भ्रष्टाचार के तीन गधे,
अंकी इंकी डंकी लाल।
खाकर डंडे,
रोड पै पड़े।
मुद्दा है प्याज का,
फूटी हुई आंख का।
देखती है कहीं,
दिखता है कहीं।
अंधे को,
अंधा न कहा होता।
बीच बाजार,
सर पर जूता ना पड़ा होता।
काकी ताई भी,
दूध से मलाई।
मलाई से घी,
बनाकर बेच रही।
भैंस किसी की,
दूध किसी का।
टांग फंसाकर,
कर रही उल्लू सीधा।