"ग़ज़ल"
हम ने तेरी ऑंखों में उतर कर नहीं देखा!
होता है कितना गहरा समन्दर नहीं देखा!!
ये हार जिस के सामने ख़ुद हार जाती थी!
दुनिया ने फिर दूसरा सिकन्दर नहीं देखा!!
माॅं-बाप की बे-हुरमती औलाद के हाथों!
अच्छा हुआ इन ऑंखों ने वो मंज़र नहीं देखा!!
कटते रहे दरख़्त तो वो दिन भी आएगा!
जब बच्चे ये कहेंगे कि शजर नहीं देखा!!
मेरे दिल पे लगे ज़ख़्मों को गिनना है मुश्किल!
उन हाथों में मैं ने कभी ख़ंजर नहीं देखा!!
थे ज़िंदगी की राहों में बस काॅंटे ही काॅंटे!
होता है कैसा फूलों का बिस्तर नहीं देखा!!
मैं भटकता रहा 'परवेज़' ख़ुद की तलाश में!
इस बंजारे ने मुद्दत हुई घर नहीं देखा!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*बे-हुरमती=बे-इज़्ज़ती (disrespect); *मंज़र=दृश्य (scene or view); *दरख़्त=पेड़ (tree); *शजर=पेड़ (tree); *ख़ंजर=छुरा या बड़ा चाक़ू या कटार (dagger); *बंजारे=ख़ानाबदोश (nomad); *मुद्दत=बहुत अधिक समय (long period of time).