एक चिड़िया
नन्ही सी,
कर इकट्ठा
तिनका तिनका,
धुप में तपती
लू को सहती,
बना रही है
एक घरोंदा,
गिरा ना देना
उसके सृजन को,
उजाड़ न देना
उसके चमन को,
तोड़ भी दोगे
उसका घोंसला,
सोचकर देखो
ऐ अभिमानी,
क्या तोड़ पाओगे
उसका होंसला,
फिर दिखेगी -
एक चिड़िया
नन्ही सी,
कर इकट्ठा
तिनका तिनका,
फिर बनाती
नया घरोंदा ।
- अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)