तुम चली गई हो,
पर मैं अब भी ठहरा हूँ।
लोग देखते हैं मुझे,
अजीब निगाहों से।
नहीं चाहिए अब दिन का उजाला,
रात ही अब मुझे भाती है।
तुम बस याद आती हो।
तुम जब से गई हो,
समय जैसे ठहर गया है।
मैं घंटों उस पेड़ के नीचे बैठा रहता हूँ,
जहाँ तुम बैठा करती थी।
बातें करती थी,
हँसती थी, गुनगुनाती थी,
कभी-कभी रोया करती थी।
तुम बस याद आती हो।
तुम्हारा दिया उपहार
अब मेरे लिए सोना बन गया है।
आँखों में भले उजाला हो,
पर दिल में अँधेरा ही समाया है।
मैं क्या करूँ,
किस डॉक्टर के पास जाऊँ?
तुम बस याद आती हो।
प्रतीक झा
शोध-छात्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
Email id:- Kvpprateekjha@gmail.com

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




