जय हो, जय हो, जय हो भारत माता,
मस्तक स्वरूप विराजित हिमालय,
श्वेत हिम रत्नकिरीट सा चमकता।
हरियाली परिधान पहन माँ भारती का,
अद्भुत, अद्वितीय, स्वरूप झलकता।
केसर की चटक लालिमा गले की हार,
सुगंधित महक करती माँ का श्रृंगार।
समतल मैदानों की शस्य श्यामला,
आभासित होती ज्यों उसकी मेखलाकार।
अद्भुत गाथाएँ हैं, इनके आभूषण,
वर्णित जिसमें देश प्रेम विलक्षण।
माँ निश्छल प्रेम की प्रतिमूर्ति,
करती जो अपनी संतान का प्रत्यवेक्षण।
रत्नाकर जिनके पग रज धोता,
पा कर यह सम्मान कृतज्ञ होता।
द्रविणांचल नूपुर सम सुशोभित,
ज्ञान, भक्ति, प्रेम, कला का सोता।
जय हो, जय हो, जय हो भारत माता।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




