मैंने तुझे
कभी हाथों से नहीं छुआ,
पर हर जन्म की हथेली पर
तेरा नाम लिखा —
बिलकुल उस आख़िरी अक्षर की तरह
जो मिटता नहीं…
तू कहीं नहीं था
पर हर चीज़ में था —
छत पर बैठा वो पपीहा,
जो बादलों से तेरी आँखें मांगता रहा
और हर बार
सूखे गले से मरता रहा।
लोगों ने मुझे देखा
जैसे मैं पागल हूँ —
कि मैं तुझसे प्रेम करता हूँ
जिसे देखा नहीं,
जिसे छुआ नहीं,
पर जिसे मैंने
अपनी रूह की झील में
डुबो कर रख छोड़ा है।
तू आया नहीं —
पर मैं रोज़ तुझे बुलाता रहा
अपने मौन से।
क्या तुझे वो ख़ामोशी नहीं सुनाई दी
जिसमें मैं रोता रहा
बिना आँसू,
बिना शब्द
बिलकुल तेरे नाम की तरह
जो हर सांस के बाद भी बचा रहा।
ओ मेरे प्रीतम…
मैं आज भी प्यासा हूँ —
तेरी उस एक दीद का,
जिसमें मैं
मर भी सकूँ,
और जी भी उठूँ।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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