आदमी को पुरानी यादें आकर रुला देती हैं
वक्त के हाथ में कठपुतली उसे बना देती हैं
चलता नहीं है जोर किसी का भी घटाओं पे
ज़ब जी चाहे चाँद को आंचल में छुपा देती हैं
बहुत जादू है इस रूप रंग पद और दौलत में
अच्छेभले इंसान को भी नाकारा बना देती हैं
तन्हाई मैखाना और रात का आलम मिलके
जाने क्यूं मेरे घर आकर साजिश रचा देती हैं
चलो दूर इस बस्ती से दास ढूंढे इक ठिकाना
यहाँ की उलझने हमको पागल बना देती हैं ||