"ग़ज़ल"
इक तेरे न होने से सब कुछ है बेकार!
ये दिल-विल इश्क़-विश्क़ प्यार-व्यार!!
मेरे दिल को लुभाने में नाकाम हैं सभी!
ये पेड़-वेड़ फूल-वूल बहार-वहार!!
दिल-ए-बेज़ार को अब कोई भाता ही नहीं!
ये रिश्ते-विश्ते अपने-वपने यार-वार!!
अब कुछ भी मनाने को ये दिल नहीं करता!
ये पार्टी-वार्टी सालगिरह-वालगिरह त्योहार-व्योहार!!
जी चाहता है इन सब को मैं आग लगा दूॅं!
ये घर-वर पैसा-वैसा ब्यापार- व्यापार!!
जब 'परवेज़' न होंगे तो फिर किस काम के तेरे!
ये कंगन-वंगन बिंदिया-विंदिया सिंगार-विंगार!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad