राष्ट्रभाषा हिन्दी
फूलों के जैसे रंग बिरंगी
हमारे देश की भाषाएँ
कुछ गुड़ के जैसी मीठी
कुछ मिर्ची के जैसी तीखी
सब भाषाओं का मान करें
चाहें तो मनचाही भाषा सीखें
सर्वोपरी मातृभाषा का सम्मान करें
प्राचीन ,पवित्र ,श्रेष्ठ ,शुद्ध
अनेक भाषाओं की जननी संस्कृत
संस्कृत ने ही हिन्दी को जन्म दिया
तब हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला
राष्ट्रभाषा सबकी मातृभाषा बनी
सहज,सरल,सुगम,संस्कृति की विरासत
भारत देश की पहचान बनी..
जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गौरव व सम्मान मिला
फिर क्यों ?हमने अपनी ही मातृभाषा का मज़ाक बनाया
क्यों?आधुनिक भाषाओं को हिन्दी का स्थान दिया
क्यों?वक़्त की ज़रूरत को हमने अपनी पसंद बना लिया
क्यों?हमारे घरों में बोलने वाली भाषा आज हिन्दी नहीं रही
क्यों?अपनी राष्ट्रभाषा बोलते हुए हमें हीन भावना महसूस होती है
अपनी ही पहचान खोकर हम अपना मान सम्मान भी खो देंगे
अपनी जड़ों को,अपनी संस्कृति को छोड़ कर हम देश की गरिमा भी नहीं सम्भाल पाएँगे
पुरातन के साथ से ही नवीनता की पहचान है..
वन्दना सूद