क्या तुमको पता है ?
ये दिल जो धड़कता है,
सीने में मेरे,
लेता है क्यों नाम,
तेरा ही हर पल?
क्यों खुद की खबर ही,
नहीं रहती मुझको,
क्या तुमको खबर है?
क्या तुमको पता है?
ये बहकी हवाएं, कितना बहकती होंगी?
ये बहकी हवाएं, कितना बहकती होंगी?
मुझे बहकते हुए देखा है क्या तुमने?
महकती है खुशबू हवा के बहकने से,
पर क्या तेरी खुशबू को जाना है इसने?
आने की आहट से महकता हूँ कितना?
कहीं ऐसी खुशबू को देखा है तुमने?
मगर तुम कहोगे यूँ ना नाम लो मेरा,
मगर मैं बता दूँ,
तेरे नाम के बिना ना मैं हूँ,
ना दिन है मेरा, ना ही रातें हैं मेरी,
ना मेरा महकना, चहकना, बहकना,
अगर तुम जो चाहो कि खो दूँ मैं इनको,
तो खो दूंगा इनको,
मगर फिर भी लेता रहूँगा ये नाम।
🌷अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' 🌷
सर्वाधिकार अधीन है