सत्ता के मतवालो सुनलो ,
सड़क में सोना पड़ जाए तो l
सच दिखलाने वालो सुनलो ,
पेट में ना रोटी जाए तो l
महलो के दीवानो सुनलो ,
घर यदि गिरवी हो जाए तो l
झर -झर आँशु बहे नयन से ,
तप मे ओले पड जाए तो l
रात -रात भर जाग -जाग कर ,
श्रम से हम दुर्भाग्य मिटाये l
तिल -तिल कर काट स्वयं को ,
ऊंची दीवाले चमकायें l
चार दीवारी घर आँगन से ,
खुद से खुद को हम ना पाए l
हाय !ये आंशु छलक पडेगे ,
हमको जीना आ जाये तो l
सपने अपने को जो भुलाये ,
सुख की सेज को हम ठुकराये l
संघर्षो से नयन मिलाकर ,
प्रियतम की सुधि को बिसराये l
भुला निशा की तपिश चुभन को ,
प्रातः उठ जब काम को जाए l
मन की इस अंतरज्वाला से ,
रो दोगे यदी तुम मिल लो तो l
हाय ! ये आंशु छलक पडेगे ,
हमको जीना आ जाये तो l
तेजप्रकाश पाण्डेय ✍️