बादल बरस कर थम गए आसमान खुल गया।
तारो का हुजूम झिलमिलाया जैसे मचल गया।।
कुछ तो मिलना चाहिए इंसानियत के होते हुए।
जमीन का कुछ वक्त के लिए बुरा ख्याल गया।।
मौसम बदल गया कुछ पल के लिए 'उपदेश'।
चाँदनी रात आई सिलसिलेवार से मलाल गया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद