दुनिया के किए हर वार का बड़ी ही बहादुरी से
जवाब दिया मैंने,
पर ज़िंदगी के चलाए इन बाणों का क्या करूं ?
परायों के दिए दर्द को खुशी से अपनाकर उन्हें
हरा दिया,
पर अपनों के ही दिए दर्दों का क्या करूं ?
दुनिया के विश्वासघात को सबक समझ लिया,
पर ज़िंदगी के किए विश्वासघात का क्या करूं ?
परायों की चलाई छुरी से संभल गई मैं,
पर अपनों की ही तलवार का क्या करूं ?
दुनिया की मात से कभी मात खाई नहीं मैंने,
पर ज़िंदगी जो मात दे रही है उसका क्या करूं ?
पराए मारे चाहे कितने ही ताने उससे मुझे कोई
फ़र्क नहीं पड़ता ,
पर अपने ही जो ताने मार रहे हैं उनका मैं
क्या करूं ?
दुनिया ने हमेशा बगावत की है मुझसे
और मैंने उसे हमेशा मुस्कुरा के टाल दिया,
पर ज़िंदगी जो बगावत पर उतर आई उसका
मैं क्या करूं ?
परायों ने बदनाम करना चाहा लेकिन अपने कर्मों से
नामी बनी रही,
पर अपनों की ही दी इस बदनामी का मैं क्या करूं ?
दुनिया ने मुंह फेरा मुझसे तो मैंने भी उससे
नाता तोड़ दिया,
पर अपनी ही ज़िंदगी ने मुंह फेर लिया तो
उसका मैं क्या करूं ?
कुछ परायों ने अपना बनाकर फिर पराया कर दिया
उसका मुझे कोई ग़म नहीं,
पर अपनों ने ही पराया कर दिया उसका मैं
क्या करूं ?
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐