तसव्वुर में तुमसे बात कर रही हूॅं,
बयां अपने सारे राज़ कर रही हूॅं।
मीलों दूर हो तुम मुझसे,
पर महसूस तुम्हें अपने पास कर रही हूॅं।
अब अपनी हर ग़ज़ल तुम्हारे नाम कर रही हूॅं,
यादों में तुम्हारी रात को दिन और दिन को रात
कर रही हूॅं।
बता नहीं सकती हाल - ए - दिल,
इसलिए अब बयां कविता में अपने जज़्बात
कर रही हूॅं।
आज तुम पर बड़ा नाज़ कर रही हूॅं,
तुमसे इश्क़ का आगाज़ कर रही हूॅं।
पर ठीक नहीं यूं दिन - रात तुम्हारी याद में
खुद को डुबोना,
इसलिए अब तसव्वुर - ए - इश्क़ से खुद को
दरकिनार कर रही हूॅं।
:- रीना कुमारी प्रजापत