सच्चा मित्र एक दर्पण जैसा होता है,
सिर्फ़ चेहरा नहीं—मन की तहों को खोलता है।
दर्पण तो बस बाहरी चमक दिखा जाता है,
मित्र भीतर की धूल को भी पहचान जाता है।
वह हमारी मुस्कराहटों के पीछे छिपे दर्द को पढ़ लेता है,
बिना कहे, बिना बोले—सब समझ लेता है।
हमारी थकी हुई आँखों की नमी तक पकड़ लेता है,
और हिम्मत की एक चिंगारी फिर से जगा देता है।
प्रशंसा में डूबो देने वाला वह मित्र नहीं,
बल्कि सच कहने का साहस रखने वाला वही सही।
जो झूठी तारीफ़ों की मिठास से भटकाता नहीं,
गलती पर चुप बैठ समझौता निभाता नहीं।
वह सच्चाई को तलवार-सी चमका देता है,
पर उसकी धार में भी ममता ही झलकता है।
वह कहता नहीं—“तू गलत है”,
बल्कि कहता है—“तू इससे बेहतर है।”
जब राहें उलझ जाएँ, मन दिशाहीन हो जाए,
तब वही मित्र कदम थाम सही राह दिखाए।
आपके गिरने से पहले आपकी उड़ान देखता है,
आपके मौन में भी आपके तूफ़ान समझता है।
दर्पण तो रोज़ बदले हुए चेहरे का चित्र बनाता है,
पर मित्र—हर दिन, वही पुराना अपनापन लौटाता है।
वह पीठ पीछे नहीं, सामने खड़ा होकर सलाह देता है,
आपकी जीत में खिल उठता है, हार में साथ देता है।
जो आपकी कमज़ोरी नहीं—आपकी शक्ति बनना चाहे,
जो दूरी नहीं—दिल की निकटता बनकर रहे,
जो भीड़ मिल जाए तब भी अकेला न छोड़े,
ऐसा मित्र जीवन की सबसे सुंदर उपलब्धि होता है।
और ऐसा मित्र सचमुच जीवन का दर्पण होता है
जो रूप नहीं, स्वभाव का असली प्रतिबिंब दिखाता है,
जो आपको वही चेहरे से नहीं, मन से पढ़ता है,
और जो आपकी वह सच्चाई उजागर करता है
जिसे आप अक्सर स्वयं से भी छिपा लेते हैं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




