हमारी खामोशियाँ हमको जीने नहीं देती कभी खुलकर
लफ्जों की ये कंजूसियां लिखने नहीं देती कभी
खुलकर I
“लिख न तु ” हर रोज कोई यहाँ एक दिलकश सा नजराना
सुखनवर दोस्तों की चाह हमें रहने नहीं देती कभी रुककर I
बहुत सोचा बहुत चाहा है हमने तो आपकी इस जर्रानवाजी को
मोहब्बत की हंसी महफिल हमें रुकने नहीं देती कभी थककर I
खुदा की मेहरबानी है क्या लेना अपने पराये से भला इसको
ये कुदरत काफिरों को भी यहाँ मरने नहीं देती कभी घुटकर I
बिछाए पलकें मोहब्बत की रहगुजर में बैठा है दास अपना अब
तुम्हारी मेहरबानी इसको यहाँ रहने नहीं देती कभी झुककर II

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




