हमारी खामोशियाँ हमको जीने नहीं देती कभी खुलकर
लफ्जों की ये कंजूसियां लिखने नहीं देती कभी
खुलकर I
“लिख न तु ” हर रोज कोई यहाँ एक दिलकश सा नजराना
सुखनवर दोस्तों की चाह हमें रहने नहीं देती कभी रुककर I
बहुत सोचा बहुत चाहा है हमने तो आपकी इस जर्रानवाजी को
मोहब्बत की हंसी महफिल हमें रुकने नहीं देती कभी थककर I
खुदा की मेहरबानी है क्या लेना अपने पराये से भला इसको
ये कुदरत काफिरों को भी यहाँ मरने नहीं देती कभी घुटकर I
बिछाए पलकें मोहब्बत की रहगुजर में बैठा है दास अपना अब
तुम्हारी मेहरबानी इसको यहाँ रहने नहीं देती कभी झुककर II