(बर्बरीक से श्याम तक का अमर संदेश)
जब वीरों का गर्जन होता था, रण भूमि लहू से रंगती थी,
धर्म अधर्म की लड़ाई में, हर आत्मा भीतर संगती थी।
उसी समय इक बालक ने, सौगंध उठाई न्यारी,
"जहाँ अन्याय देखूँगा मैं, वहीं उठेगी मेरी तलवार।"
वो बर्बरीक था, घटोत्कच सुत, शक्ति में सबसे भारी,
तीन बाणों का स्वामी था, पर बुद्धि रही ब्रह्मचारी।
शिव ने दिया वरदान उसे, गुरु से मिला उजियारा,
माँ की आज्ञा, सत्य का पथ, यही था उसका सहारा।
सुन महाभारत का यश गान, वह दौड़ा रण की ओर,
कहा – “जो होगा सच्चा, मैं रहूँगा उसी के छोर।”
कृष्ण मिले मार्ग में उसे, वेश लिया ब्राह्मण प्यारा,
पूछा: “यदि तू युद्ध करे तो किस ओर होगा नज़ारा?”
बर्बरीक ने कहा सहजता से, “जो हार रहा, उसके संग,”
कृष्ण मुस्काए, पर मन में तब उठा एक गहरा जंग।
“तेरी शक्ति यदि हार को दे, तो न्याय रहेगा कहाँ?
धर्म बचेगा किस रीति से, जब होगा अधर्म महान?”
“बलिदान ही होगा अब पथ, यदि पाना है सच्चा ज्ञान,”
और वीर ने शीश चढ़ा दिया, रख दी जीवन की आन।
कृष्ण बोले: “अब अमर रहेगा, तेरा नाम बनेगा श्याम,
खाटू में तेरा दरबार सजेगा, तुझसे माँगेंगे सब काम।”
तब से जो भी पीड़ा लाए, या आँखों में हो नीर,
श्याम सुने हर मन की बात, वो बाँधे जीवन की पीर।
सच्चे भाव, विनम्र हृदय से जो पुकारे श्याम,
उसके जीवन में भर जाए, प्रेम, करुणा और विश्राम।
🌼 श्याम से जो सीखें हम सब, वो यह अमर सन्देश: 🌼
ना अभिमान, ना अहंकार हो, बस प्रेम और समर्पण,
करो वही जो धर्म कहे, भले हो कितना भी क्षरण।
शक्ति हो तो सज्जनों के लिए, न कि नाम या विजय के लिए,
जीवन जीओ इस भाव से — कि जीओ परमार्थ के लिए।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




